Prakriti ki pukar suno
"प्रकृति की पुकार सुनो"
ऑस्ट्रेलिया में लगी आग ने लाखो जीवों का अंत कर दिया ,कितने पेड़-पौधें जलकर राख हो गए।और हमने इसे प्राकृतिक प्रकोप नाम दे कर अपना पल्ला झाड़ दिया।परन्तु क्या यह सच में प्रकृति का ही दोष है?प्रकृति ने अपने सब जीव-जन्तु में से बस मानव को ही बुद्धि ,जिज्ञाषा ,विचार को व्यक्त करने की क्षमता दी है।उसने अपना सब कुछ अपने अंदर पल रहे जीव-जन्तु के लिए ही रखा ,चाहे वह पेड़-पौधे हो या जीव-जन्तु उसने सभी को समानता दी ,परंतु हम विकास को लाने ,अपने जीवन को सरल बनाने की होड़ में इतने अविष्कार किये की हमने इस पृथ्वी को सिर्फ स्वयम् का यानि मनुष्य का ही समझा पेड़-पौधे हमारे सहायक या दया के पात्र बन गए ,जो हमे प्रिय, उसे हमने रखा पर जो प्रिय नहीं उसे भगा दिया ।क्या आप को नही लगता कि जिस जमीं में आप रह रहे है,वो कभी किसी जानवर या पेड़-पौधे का निवास रहा होगा ,हमे सड़को या किसी स्थान में गाय बैल घूमते दिखते है तो हम उसे भागना चाहते है परंतु क्यों ,क्या उनका इस जमींन पर अधिकार नहीं है ?बात यह है कि उन्हें अपने अधिकारो का ज्ञान या उनके पास कोई कानून नही है जमीं अपने नाम करने का । हम उन्हें गोशाला देते है परंतु भ्रष्ट-मनुष्य उनके भोजन और सुविधा का भी उपभोग कर लेता है।दुखद बात यह है की बहुत से चेतावनी के बाद भी हम अपने सुख-सुविधा ,बिल्डिंग ,फ्लाईओवर ,मेट्रो के लिए पेड़ो को काट रहे है।
हमने उनके लिये अगर नेशनल पार्क या सेंचुरी बनाया भी है तो उसमे भी हमारी मंशा उन्हें सुरक्षित आवास देना न हो कर अपने मनोरंजन के लिए ,घूमने के लिए अपने बच्चों को दिखाना है ।उन्हें बताना ही कि वो बस जाने की जंगली जानवर कैसे दिखाते है।
मनुष्य ने बुद्धि पायी,अपने विचारो को व्यक्त करने की शक्ति पाई,शिक्षित हुए,बुद्धिमान हुआ परंतु उसने 'सर्वजीव सम्मान'की भावना को भूल गया,अपने कर्त्तव्य को भूल गया है,कहते है कि पढ़ा-लिखा आदमी अपने कर्तव्य से ज्यादा अपने अधिकार को अत्यधिक महत्व देता है ।हमारे जल जमींन और भोजन में बराबर अधिकार जीव-जंतु का भी है।
आज जलवायु इतना परिवर्तित हो गया है कि अगर समुन्द्र का पानी के तापमान में हल्का सा भी परिवर्तन लाखो जीव का अंत कर देती है और दूसरी ओर धरातलीय जल का स्तर भी बहुत नीचे हो गया हैं,तालाब सूख रहे है।हम अपने लिए तो पानी की व्यवस्था करने में असमर्थ हुए, तब उन बिचारे पशु-पक्षी का हिस्सा भी अपने लिए उपयोग कर लिया।हाल ही में ऊँठ को मार गया इसलिए क्योकि उनके द्वारा जल का अत्यधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है।ऐसा तो नही है कि प्रकृति ने यह जल सिर्फ मनुष्य के उपयोग के लिए बनाया है,यह सभी के लिए ही है।
शायद हम भूल रहे है कि यह पृथ्वी और प्रकृति द्वारा दिए वस्तु हमारे ही उपभोग के लिए ही नही है,ये सभी जीव के लिए समान हैं ।प्रकृति के सामने हम और पशु-पक्षी सब बराबर है और हमे 'सर्वजीव सम्मान 'की भावना को अपनाना चाहिए।
जरा सोचिए एक पेड़ के काटने से उसमे रहने वाले गिलहरी,पक्षी,गिरगिट और अन्य कीट का कितना नुकसान होता है।इसलिए जरुरी है कि हम अपने आवास में इन्हे भी स्वक्छन्द विचरण करने देँ, उनके लिए पानी-भोजन देँ और उन्हें भी इस धरती का बराबर हिस्से-दार समझे।
क्या आप भी इसे सहमत है तो नीचे comment कर हमे जरूर बताइये।।