गोदान - मुंशी प्रेमचंद ( review of Godaan by munshi Premchand ) Book review

गोदान की समीक्षा (Godan- Book review)

गोदान की समीक्षा (Godan- Book review)


गोदान के लेखक " मुंशी प्रेमचंद" (1900-1936)

गोदान,मुंशी जी की कालजयी रचना में से एक है।उनकी हर उपन्यास समाज के लिए दर्पण की तरह ही है एवं समाज को उसके ही स्वरूप का दर्शन कराती हैं।तथा वर्तमान समय में भी यह हमें 'आज के ही वर्तमान से मिलाती हैं। इसलिए गोदान को कालजयी माना हैं।
गोदान की कहानी हमें ग्रामीण-जीवन और शहरी विचारधारा को बहुत ही अद्भुत ढंग से देखने और  समझने का अनुभव देती हैं।



गोदान के पात्र  - 

गोदान का मुख्य पात्र "होरी महतो " जो एक गरीब किसान है और  अपने सच्चे आदर्शों के साथ अपने जीवन की मूलभुत वस्तु के लिए संघर्ष करता है, वही उसकी पत्नी 'धनिया'है, जो एक तेज-तरार और बेबाक महिला हैं उसे समाज की रीत- व्यवहार से कोई मतलब नही है।उसका बेटा गोबर एक गरमखून का युवा,ज़मीदार रायसाहब और उनके कुछ मित्र मेहता ,मिस मालती जो डॉक्टर है और बड़ी ही बोल्ड महिला,जो अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं।




गोदान की रूपरेखा /महत्व/विषयवस्तु--

उपन्यास में सिर्फ होरी का ही नहीं बल्कि गांव के अन्य किसान व खून चूसने वाले महाजन ,धार्मिक ठगी करने वाले ब्राह्मण ,दलित वर्ग की स्थिति ,पारिवारिक मूल्य,ग्रामीण मूल्य ,परोपकार ,लालच का बहुत ही अद्भुत दर्शन होती हैं।
तो वही दूसरी ओर अभिजात्य वर्गों, जो धनी भी है और शिक्षित भी ,वे अपने ही शहरी जीवन के संघर्ष ,तथा विदेशी आदर्शो को अपनाने में लगे हुए हैं , शिक्षित वर्ग भी है जो समाज में परिवर्तन लाना चाहते है ,वे विचारशील है ।जिनके विचारों का मुंशी प्रेमचंद जी ने बहुत ही सार-पूर्ण वर्णन किया है।
गोदान समाज में महिला की स्थिति पर भी प्रकाश डालता हैं तथा शिक्षित महिलाओ द्वारा,अन्य महिलाओं को अपनी स्थिति सुधारने के लिए जागरूक करना,जो आज के वर्तमान परिदृश्य में भी जारी है।
गोदान 1936 में लिखी गई है परंतु इसमें वर्तमान परिदृश्य का ही वर्णन लगता है।समाज में संघर्ष हमेशा ही चलता रहता है,संघर्ष चाहे अमीर-गरीब का हो, शोषित व शोषक वर्गों का या महिलाओं की स्थिति सुधारने का हो । ये सब संघर्ष तब भी थे ,और आज भी, ये सब है।आप इस उपन्यास को आउटडेटिड नहीं कह सकते है


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गोदान की भाषा शैली - 

गोदान उपन्यास की भाषा  सामान्य हिंदी ही हैं और इसमे कुछ-कुछ ग्रामीण बोली का पुट दिखाई देता हैं कुछ स्थानों पर  सामाजिक व्यंग्य भी दिखाई देता हैं।गोदान बहुत ही मार्मिक उपन्यास है और पढ़ते समय कई स्थानों पर आँशु को रोका नही जा सकता हैं। मार्मिकता ग्रामीण परिवेश में ही नही वरन् शहरी वर्गों की स्थिति भी मार्मिक ही हैं
लोगो का संघर्ष पूरी जीवन-भर,बस अपने बेसिक अवश्यकता के लिए,बहुत ही कष्ट-दायक लगता है।
कई सहायक पात्र है जो अपने व्यवहार में इतने सच्चे है कि आपको पढ़कर शांति और ख़ुशी की अनुभूति होती हैं,इसमे आपको भारतीय ग्रामीण परंपरा ,प्रेम ,सामजिक समरसता का बहुत ही सूंदर वर्णन मिलता हैं गोदान के पात्रो  की छोटी-छोटी बात,व्यवहार आपको, आपके ही संस्कृति का दर्शन कराएँगे और आपको वर्तमान समाज में, सामजिक अपनापन खोने की झलक दिखाई देगी।




क्यों पढ़ें गोदान - 

गोदान आपको सामाजिक मूल्यों तथा विचारों को और साफ देखने में मदद करेगा। यह गोदान उपन्यास आपकी देखने और विचार की दृष्टिकोण में अत्याधिक परिवर्तन लाएगा और आपको अपने शुद्ध भारत से परिचित कराएगा।




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गोदान टीवी सीरियल  बनाम  गोदान पुस्तक --

गोदान पर तहरीर टीवी सीरियल है परंतु वह बस होरी पात्र के चारो ओर घूमती है, बुक इतनी बड़ी है कि लेखक के विचारो को पर्दे पर लाना बहुत कठिन है आपको बस पात्रो के संवाद को ही दिखाया गया है।लेखक के विचार जो इस उपन्यास गोदान की आत्मा है उसे दिखाना कठिन है।इसलिए पुस्तक पड़ना ही सही है।

आपको मेरे विचार और यह गोदान की समीक्षा कैसी लगी कृपया कमेंट करें|


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