दीवाली (Diwali)

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दीवाली का नाम सुनते ही मिठाई,नए कपड़े ,पटाखो का ख़्याल आ जाता है और हो भी क्यों न ये त्योंहार है ही ऐसा।दुकानों में हर जगह चहल-पहल ,घर की सफाई, रंग करवाना ,सब कुछ ऐसा लगता है जैसे एक नए दुनिया का निर्माण हो रहा हो और सभी व्यस्त है इस निर्माण कार्यो में । यह परिवर्तन का त्योंहार है।व्यापारियों के नए वर्ष के आगमन का परिचायक है।परंतु यह दीवाली अमावस के अंधेरे में ही  क्यों होता कभी सोचा है।ये पर्व हमे क्या सीख देना चाहता है।अमावस का घनघोर अंधेरा जब सर्वत्र होने का अहंकार करता है।तब छोटे-छोटे दीपो की रौशनी भी उसके वजूद को ख़त्म कर देने का साहस दिखाती है।ये हमे बताते है इस दुनिया में कितना भी आतंक ,अज्ञानता,अभद्रता का अंधेरा क्यों न हो, ज्ञान की एक प्रकाश ही इस अंधकार की मिटने का साहस रखती है।हम जानते है कि अगर अंधकार से जीतना हो तो उसे प्रकाश से ही जीत जा सकता है।यह प्रतीक है इस बात का कि अन्धकार रूपी बुराई को ज्ञान रूपी प्रकाश से ही मिटा सकते है। दीप एक मनुष्य को तथा उसका प्रकाश मनुष्य के ज्ञान को दर्शाता है। यह पर्व हमे दीप की तरह  जीवन में साहस ,आत्मविश्वास ,परोपकार को अपनाने की सलाह देता है । वैसे हर पर्व अपने साथ  जीवन जीने की सलाह जरूर देता है। हमे उस सलाह को समछ कर अपने जीवन में उतार लेना ही उस पर्व का  सम्मान होगा।


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