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कहते है हाथी सबसे ताकतवर जानवर होता है और हाथी कही अपने पर आ जाये तो वह बहुत ज्यादा खतरनाक हो जाता है इसलिए जंगली हाथी से लोग बहुत डरते है। यें जमीन में रहने वाले बाकी जीवों से ज्यादाशक्तिशाली है पर फिर भी एक महावत उस शक्तिशाली जीव को कैसे संभालता है उसे बांध कर कैसे रखता हैं, जो हाथी टनों भार को खीचने का दम रखता हैं, एक रस्सी से बांध कर कैसे रख सकता हैं ?आख़िर कैसे? इसका कारण है उसकी मानसिकता, उसकी सोच ।
होता यह है की जब हाथी छोटा बच्चा रहता है तब वह आज़ादी से रहना चाहता है ,तो महावत उसे एक मज़बूत रस्सी से बांधता है ,उस समय हाथी छोटा होता है उसकी ताकत भी कम होती है वह रस्सी को छुड़ाने की कोशिश करता हैं,महीनो प्रयास करता है और अंत में वह बच्चा-हाथी हार मानलेता है उसे लगता है वह कभी उस रस्सी को तोड़ नही सकता और जब वों बड़ा होता हैं,जब उसकी शक्ति भी ज्यादा होती हैं,तब भी वह उसी रस्सी को तोड़ नही सकता क्योकि उसकी मानसिकता अब खुद को कमजोर मानने की हो चुकी है उसे अब यह भ्रम हो चूका है कि वह कितनी भी कोशिश करें रस्सी नही तोड़ सकता ,वह कमजोर हैं।
ऐसा ही हाल महिलाओं का भी है ,बचपन से ही उन्हें "बेचारी ,अबला ,कमजोर" और न जाने किस-किस तमगों से नवाज़ा गया है, बचपन से ही मिले इन तमगों को उसने उपहार समझ के सहर्ष स्वीकार किया,वह जानती ही नही की ये तमगे वही रस्सी है उसके सोंच के बन्धन हैं जो उसे उसकी शक्ति से अनजान कर रही है, उसे कभी पता ही नही चला कि वह कभी-भी कमज़ोर थी ही नही ।
आखिर यह उपहार तमगा कब-से,किनती पीढ़ियो से एक-दूसरे को दिया जा रहा है? मैंने सुना ही है कि किसी को कमजोर बनाना है तो उसे ज्यादा-से-ज्यादा सहारा दो,उसे बेचारी बेचारा कहते रहो और एक दिन वह सच में बेचारा ही हो जाएगा ।पौधों के साथ भी यही है ज्यादा सहारा दोगे तो बाद में वह बिना सहारे का खड़े भी नही हो पाएगा।सब कुछ पा कर भी वह अक्षम ही रहेगा।
हम जिस सदी में रह रहे है वह सबसे ज्यादा विकसित सदी है आज वह सब कुछ पा सकते है जो कुछ चाहिए,परन्तु महिला अब भी कमजोर क्यों है जरा सालों पीछे का सोचिये लक्ष्मीबाई, दुर्गावती, रजिया सुल्तान आखिर इन सब में ऐसा क्या था? तब में और अब में शारीरिक अंतर तो नहीं ही होगा।तो आखिर 1236 ई वीं के समय रजिया सुल्तान पुरे भारत की पहली महिला शासिका कैसे बनी, उसकी योग्यता क्या होगी जो उसके पिता ने उसे पुरे भारत का शासक बनाया वो भी मुस्लिम महिला |
आज जहाँ महिलाओं को अपने ही घर में अधिकार नही मिलते,वो पुरे भारत का अधिकार पाई। 1236 से और आज 2020 में 784 साल का अंतर है और इन बीते सालो में क्या परिवर्तन आया, हम और मजबूत होने के बजाये कमजोर क्यों हुऐ ।
बचपन से सुनते आये है सावित्री बाई फुले,पंडित रमाबाई,जीजाबाई और "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी "रानी लक्ष्मीबाई 1857में अंग्रेजो से हाथ में तलवार लिए घोड़े में सवार युद्ध किया,क्या उनके पास आज की सी सुविधा थी न स्कूटी, न मोबाइल, न पुलिस ,न स्वास्थ्य सुविधा और न ही सेनेटरी नेपकिन ।सोच सकते है परिस्थिति कितनी कठिन रही होगी, युद्ध किया अपनी मातृभूमि के लिये । और हम आज भी सेना में महिला स्थायी कमिशन के लिए प्रयास कर रहे हैं। बता सकते है की हम विकास कर रहे या और भी पीछे जा रहे अपनी वैचारिक मानसिकता में ,सोच में ।
शायद इन वीरांगनाओ ने कमजोर मानसिकता अस्वीकार कर दिया हो ।ऐसा तो कह नही सकते की इनके साथ कोई कठिनाइया नही आई होगी,अवश्य आई होगी और उन्होंने उसे बड़ी ही दृढ़ता से पार किया होगा। समाज की रुठिवादिता भी उस समय ज्यादा रही होगी।
Image Credit:Unsplash महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए- अपने विचारों को बदलें |
आखिर पुरुषप्रधान समाज तब भी थी और अब भी है लेकिन जरा सोचिये हम हमेशा से सुनते आये है कि एक बच्चे की पहली गुरु उसकी माँ होती हैं और ये बात भी सत्य है की बच्चे को बचपन में सिखाये हर बात हमेशा याद रहती हैं |
हम सब शिवाजी की माँ जीजाबाई के बारे में जानते ही है।बच्चे का पालन पोषण माँ करती है उसमे संस्कार का बीज भी माँ ही डालती है तो फिर सत्ता पुरुष प्रधान कैसी ।अगर वही पुरुष जब छोटा बच्चा था तो उसकी गुरु ही उसकी माँ थी उसको नैतिक ज्ञान,व्याहारिक ज्ञान देने वाली भी उसकी माँ थी तो फिर वह पुरुष अपने ही गुरु के वर्ग को नीचे क्यों दबा रहा है? और आखिर कैसे?
इसका उत्तर है अगर एक माँ जो स्वयं महिला है, स्त्री है ,जब एक लड़की के बजाय एक लड़के की माँ बनाने को अत्यधिक गर्व की बात मानती हो,तो उससे हम कैसे उम्मीद करे कि वह अपने लड़के को, लड़के और लड़की बराबर होते है ऐसा ज्ञान देगी ,वह कैसे उस पुरुष को सिखाएँगे कि लड़की का सम्मान करें,वह महिला सशक्तिकरण की बात कैसे कर सकती हैं,वह जब लड़के की माँ बनकर गर्व से फूलती है तो वह कैसे कहेगी कि लड़का-लड़की बराबर होते हैं।
प्रकृति में "जीवन का चक्र" है,और महिला इसमे सदैव प्रधान थी और रहेंगी, उसे अपने अंदर से कमजोर या सहायक पात्र होने का भ्रम निकलना होगा।अगर जननी अपने संतान में लिंग भेद करेंगी तो पूरा संसार अर्थात उससे ही जन्म लेने वाला पुरूष भी भेद करेगा ही,क्योकि उसकी म स्त्री को कमजोर, अपमान मान था।
प्रकृति का भी सीधा नियम है बलवान ही कमजोर का शिकार या शोषण करेगा,और यह सत्य भी है हम सबने पढ़ा ही है कि एक शोषित वर्ग है और एक शोषक । अगर आप गौर करे तो शारीरिक रूप से दोनों वर्ग एक जैसे ही है पर एक कमजोर है और एक ताकतवर,
इसका कारण क्या हैं,अंतर क्या हैं,अंतर सिर्फ सोच का है एक स्वयं को शोषित कमजोर मानता है और दूसरा ताकतवर यही विचार महिला में भी हैं वह स्वयं को शोषित ही मानती है। बस विचारों की यह निम्नता उसके स्वयं के कमजोर होने का कारण है।उसका स्वयं से ही द्वेषपूर्ण व्यवहार,भेदभाव और अपने ही लिंग के प्रति गलत या छोटी सोच रखना ही उसके कमजोर शोषित होने का कारण हैं।
वर्तमान समय में शारीरिक बल से ज्यादा बौद्धिक बाल का महत्त्व हैं जिसमे महिला पीछे नही हैं बस उसे अपने को आर्थिक रूप से भी मजबूत करना होगा ।अपने में हमेशा वो कौशल गुण रखना होगा कि वह कभी भी आर्थिक अक्षम न रहें।
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Bht badhia likhi h...i m impressed
जवाब देंहटाएंYou are telling absolutely right.....and it is very nice thing...
जवाब देंहटाएंOne of the best article on women empowerment I have ever read
जवाब देंहटाएंVery true nd very nice article 👍
जवाब देंहटाएंKeep it up❤️
Thankyou 🥰
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