नरेंद्र कोहली रचित "अभ्युदय" के ओजस्वी विचार


 

अभ्युदय, साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली द्वारा लिखी अद्भुत रचना  हैं जिसमे "राजकुमार राम" के "मर्यादा पुरुषोतम श्री राम" बनाने की यात्रा का वर्णन हैं , हाल ही में कोरोना के कारण 17 अप्रैल, 2021 को साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली जी का  निधन हो गया|  कोहली जी एक अद्भुत लेखक,समीक्षक और विचारक थे |अभ्युदय (रामकथा) भगवान राम की कथा हैं परंतु यह "एक राजकुमार राम की, जननायक राजा मर्यादा पुरुषोतम राम " कहलाने की कहानी हैं ,
 
 इसी उपन्यास के कुछ ओजस्वी विचार आपको नीचे मिलेंगे,  इन्हे जरूर पढ़े |  


  • न्यायी शासक का नेतृत्व पाकर स्वयं प्रजा ही अपने बल पर समस्त अन्याय और अत्याचार को समाप्त कर देती हैं पर यदि शासक अन्यायी हो तो ये दुर्बल जन किसके भरोसे पर अन्याय के विरुद्ध लड़ेंगे....?


  • "सत्यप्रिय होने के कारण ही लड़ना पड़ रहा हैं -असत्यप्रिय होता तो कब से राक्षसों के शिविर में जाकर सुख से सोया होता "


  • प्रजा ना तो कायर होती हैं ना आलसी, पर उचित नेतृत्व का निरंतर आभाव उसे कायर और आलसी ही नहीं, अत्याचार और अन्याय के प्रति सहिष्णु भी बना देता हैं।


  • दुर्बल को न्याय मांगने का अधिकार सबल से कहीं अधिक होता हैं।


  • अधिकार उसको होता हैं जो न्याय कर सके, किसी का भी न्याय पूर्ण व्यवहार अपने आस पास के जन सामान्य में सेना खड़ी कर लेता हैं राम सेना साथ ले कर नहीं चलता, वह जनता में से सेना का निर्माण करता है।


  • अपराधी की रक्षा करने वाले को भी उसके दुष्ट कृत्यों के लिये दण्डित किया जाना पूर्णतः न्याय के अंतर्गत है


  • विचार-विनिमय के निषेध तथा विचारभिव्यक्ति के वर्जन से उचित-से-उचित कर्म भी प्रजा की दृष्टि में अनुचित हो जाएगा।


  • किसी वर्ग, जाति,राष्ट्र वय अथवा स्थिति-विशेष के कारण किसी अपराधी को क्षमा कर देना न्याय की हत्या कर, अपराध को प्रोत्साहित करना हैं


  • यदि प्रत्येक अपराधी को दंड देने का कार्य राम को ही करना हैं तो इन सेनानायकों तथा शासन प्रतिनिधियों की आवश्यकता ही क्या है! यह दंड शेष सेनानायकों और शासन प्रतिनिधियों कों बताएगा कि यदि वे स्वयं साथ साथ उन्हें भी अपने अकर्तव्यों के लिये दण्डित करेगा। उन्हें अपना दायित्व पूर्ण आं करने का दंड अवश्य मिलना चाहिए।


  • स्थानीय प्रजा में मिश्रित होकर अपनी कुटिलताओं का प्रसार करते रहेंगे। केवल नेता कों दण्डित कर उसके अनुयायियों कों बिना परख के अपने में सम्मिलित कर लेना का प्राय: परिणाम यह होता हैं कि जिन अपराधों के लिये हमने उनके नेताओं कों दण्डित किया था उन्ही अपराधों का प्रसार उनके अनुयायी स्वयं हमारी अपनी प्रजा में कर देंगे।


  • पीड़कों और शोषको कि कोई जाति नहीं होती।


  • यदि व्यक्ति में चरित्र की  दृढ़ता, आत्मबल और जन कल्याणोन्मुखी दृष्टि न हो तो वह जाति के वैभव कों निजी वैभव मानकर सम्पूर्ण प्रजा में समान वितरण ना कर स्वयं उसका भोग आरम्भ कर देता है


  • राम चिंतन कि मौलिक कसौटी है


  • परंपरा से चली आती अनेक मर्यादाओ कों सामान्य लोग, मन से कही असहमत होते हुए भी ढोते चले जाते है ज़ब कोई क्रन्तिकारी व्यक्तित्व उन मर्यादाओं पर प्रहार करता है तभी वे मर्यादाए टूटती है और जन सामान्य उनका उल्लंघन कर पाता है... गौतम तपस्वी है सच्चरित्र है किन्तु उनके व्यक्तित्व में मौलिक क्रांति का तत्व नहीं है


  • ऐसे लोग प्रत्येक देश और काल में वर्तमान होते है वत्स!"गुरु बोले "जो ऊंचे आदर्शो तथा लक्ष्ययों का आवरण ओढ़कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते है।


  • किसी भी शासन में ज़ब तक बुद्धिजीवी शासन का साथ देते है, तब तक शासन कितने सुचारु रूप से चलता है -शासक प्रजा के शरीर पर शासन करता हैं, बुद्धिजीवी उसके मन कों बहकाए रखता हैं। प्रजा न  तो अपनी दयनीय स्थिति,अपने शोषण के प्रति जागरूक होती हैं, न  अपने अधिकारों के प्रति सचेत।


  • प्रत्येक शासन ने ऋषियों कों महत्त्व दिया था कि ये लोग सामान्य जन के विरुद्ध शासन का पक्ष ले और जन सामान्य के शोषण तथा दलने में शासन के सहायक हो -नहीं तो इन्हे इतना आदर-मान देने कि सार्थकता ही क्या है।


  • "पूर्वाग्रहयुक्त बुद्धि तो सत्य का अन्वेषण नहीं कर सकती....."


  • प्रजा भीरू हैं यह जानते हुए भी कि उचित क्या है उपयुक्त का है प्राय: लोग प्रतीक्षारत हैं कि कोई उनका संगठन करें कोई उनका नेतृत्व अपने हाथों में ले, पहल कोई और करें।


  • जो अपना पल्ला बचाने के लिए तटस्थ, निर्विकार तथा उदासीन  होने का अभिनय करते है। राह चलते मार्ग पर तमाशा देखते के लिए उत्सुक भीड़। ज़ब तक तमाशा होता रहा, देखते रहे, और जैसे ही न्याय ने अपने पक्ष में कर्म का आह्वान किया,उनके कंधो पर दायित्व डालने का प्रयत्न किया, निर्विकार हो गए 



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