हाल ही में कोरोना के कारण 17 अप्रैल, 2021 को मशहूर साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली जी का आकस्मिक निधन हो गया| इन्हे 2017 मे भारत सरकार की ओर से पद्मश्री सम्मानित किया गया था |
एक लेखक का व्यक्तिव उसके लेखन शैली से ही पता लगाया जा सकता हैं कि लेखक के विचार कैसे रहे होंगे ,कितनी शक्ति, कितनी ओज हैं उनके विचार में, किसी बेबाकी से उनके पात्र अपने विचार अभिव्यक्त करते हैं , ऐसे ही एक लेखक थे "डॉ. नरेंद्र कोहली "
कौन थे डॉ. नरेंद्र कोहली ? || Kon the Dr. Narendra Kohli in hindi ?
नरेंद्र कोहली जी का जीवन परिचय -
कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940 को सियालकोट तात्कालिक पाकिस्तान में हुआ बाद मे भारत विभाजन के बाद पूरा परिवार जमसेदपुर आ गया ,यही उनकी शिक्षा हुए बाद में उच्च शिक्षा के लिए वे दिल्ली आए और यही से उन्होंने अपने स्नातक और डॉक्टरेटे की डिग्री हासिल की |
हिन्दी के इस सर्वकालिक श्रेष्ठ रचनाकार की प्रारम्भिक शिक्षा का माध्यम हिन्दी न होकर उर्दू था। हिन्दी विषय उन्हें दसवीं कक्षा की परीक्षा के बाद ही मिल पाया।
नरेन्द्र विद्यार्थी के रूप में अत्यंत मेधावी थे एवं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते रहे. वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भी उन्हें अनेक बार प्रथम स्थान प्राप्त हुआ।उन्होंने 1961 में जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कॉलेज (रांची विश्वविद्यालय) से हिंदी में बीए (ऑनर्स) पूरा किया।
उन्होंने 1963 में रामजस कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में एमए पूरा किया और 1970 में दिल्ली विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। प्रसिद्ध आलोचक डॉ॰ नगेन्द्र के निर्देशन में "हिन्दी उपन्यास : सृजन एवं सिद्धांत" इस विषय पर उनका शोध प्रबंध पूर्ण हुआ।
इस प्रारम्भिक कार्य में ही युवा नरेन्द्र कोहली की मर्म का भेद जान लेने वाली दृष्टि एवं मूल तत्व को पकड़ लेने की शक्ति का पता लग जाता है।
नरेंद्र कोहली जी पर आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी की साहित्यों का बहुत प्रभाव पड़ा । पौराणिक कथाओ कहानियों का आज के समाज, विज्ञान, बौद्धिकता के साथ विसलेशन करना, व्याख्या करना ये द्विवेदी जी का प्रभाव दिखाता हैं
डॉ. नरेंद्र कोहली जी की कुछ प्रसिद्ध रचना
डॉ. नरेंद्र कोहली जी ने कई प्रसिद्ध साहित्यों की रचना की हैं इसमे कुछ पौराणिक विषयों पर जैसे महासमर (महाभारत पर आधारित),अभ्युदय (रामकथा) ,कृष्ण-सुदामा के जीवन पर आधारित 'अभिज्ञान','आत्मदान' हैं
उन्होंने परिवार और समाजिक जीवन पर आधारित कुछ उपन्यास भी लिखे। लेकिन सिर्फ समाज को चित्रित करना, या इसके दोषों और दुविधाओं से छुटकारा पाना उसे संतुष्ट करने वाला नहीं था। उन्होंने महसूस किया, कि साहित्य समाज के एक संकीर्ण, आंशिक और सीमित प्रदर्शन के द्वारा अपने अंतिम लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकता है, न ही ऐसे साहित्य से समाज को लाभ मिल सकता है। खराब मानवीय गुणों का प्रदर्शन केवल बुराई और बेईमानी को प्रोत्साहित करेगा। इसलिए, जीवन के महान, सम्मानजनक और नैतिक पहलू को प्रदर्शित करना साहित्य का लक्ष्य होना चाहिए।
तोड़ो कारा तोड़ो (विवेकानंद पर अधरित ) ,पुनरारंभ, आतंक, आश्रितों का विद्रोह, साथ सहा गया दुख, मेरा अपना संसार, दीक्षा, अवसर, जंगल की कहानी, संघर्ष की ओर, युद्ध, अभिज्ञान, आत्मदान, प्रीतिकथा, कैदी, निचले फ्लैट में, संचित भूख आदि हैं। संपूर्ण रामकथा को उन्होंने चार खंडों में 1800 पन्नों के वृहद उपन्यास में पेश किया, "न भूतो न भविष्यति" ,क्षमा करना जीजी', 'प्रीति-कथा जैसी शामिल हैं
अभ्युदय - अभ्युदय, साहित्यकार डॉ. नरेंद्र कोहली द्वारा लिखी अद्भुत रचना हैं जिसमे "राजकुमार राम" के "मर्यादा पुरुषोतम श्री राम" बनाने की यात्रा का वर्णन हैं कोहली जी एक अद्भुत लेखक,समीक्षक और विचारक थे |अभ्युदय (रामकथा) भगवान राम की कथा हैं |
यह एक राजकुमार राम की, जननायक राजा मर्यादा पुरुषोतम राम कहलाने की कहानी हैं ,अभ्युदय में ‘दीक्षा’, ‘अवसर’, ‘संघर्ष की ओर’ और ‘युद्ध’ भाग में हैं |
राम चरित मानस "भगवान राम" की कथा हैं परंतु यह एक राजकुमार राम की जननायक राजा मर्यादा पुरुषोतम राम कहलाने की कहानी हैं , कुछ वाक्य अभ्युदय उपन्यास से ,
"अधिकार उसको होता हैं जो न्याय कर सके, किसी का भी न्याय पूर्ण व्यवहार अपने आस पास के जन सामान्य में सेना खड़ी कर लेता हैं राम सेना साथ ले कर नहीं चलता, वह जनता में से सेना का निर्माण करता है।"अभ्युदय उपन्यास के कुछ ओजस्वी विचार पढ़ेने के लिए लिंक पर क्लिक करें |
हम सब ने बचपन से ही भगवान राम, मर्यादा पुरुषोतम राम ,रामराज्य ये सब सुना हैं पर वो क्या गुण थे? क्या आदर्श थे?उनके जो एक मानव कों भगवान कि पदवी तक पहुंचा दिया? मानव राम से भगवान राम बनाया।
राम के क्या आदर्श थे उनके क्या विचार थे उनके क्या निर्णय किये एसा क्या किया उन्होंने जो वे जन प्रिय हुए ,आखिर राजा राम भगवान राम क्यों हो गए ,क्यों एक भावी राजा जो अभी राजा पद पर असिन ही नहीं हुआ और उसके राज्य त्यागने पर पूरी जनता उसके लिए विलाप कर रही हैं क्या कर दिया उस राजकुमार राम ने बिना राजा बने , अगर बात राजकुमार कि थी तो तो 3 और थे क्या खास था राम में,
राम में खास था उनका निर्णय उनकी ऊर्जा उनकी कमजोर जनता में साहस भरने कि प्रतिभा, राम वों नेता नहीं थे जो कमजोर कि रक्षा कि बल्कि उन्होंने उन कमजोरों कों खुद के लिए खड़े होने विरोध करने और स्वयं के लिए लड़ाने कि प्रेरणा दी,जन चेतना भरा, और त्यागदीये गए लोग कों अपनाया।जनता के लिए लड़ना और जनता कों खुद के लिए स्वयं लड़ने लायक बनाना ये अंतर हैं
उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी के अलावा संस्मरण, निबंध जैसी सभी विधाओं में लगभग सौ पुस्तकें लिखीं।पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियां सुलझाते हुए उन्होंने आधुनिक समाज की बुनियाद रखने में अहम भूमिका निभाई। इन्होंने हिंदी साहित्य में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का युग शुरू किया
तोड़ों कारा तोड़ो ,जिसका कई भाग में प्रकाशन हुआ हैं यह विवेकानंद पर लिखी गई हैं, इसमे विवेकनन्द के विचार ,उनका जीवन अनुभव,उनके विचार का वर्तमान समाज विशेषतः युवाओ को अनुभव कराना ,उनकी युवाओ के लिए संदेश इस उपन्यास में हैं | वही महासमर जो महाभारत पर आधारित आठ खंडों में हैं विवेचना का तरीका बितकुल नया और वर्तमान समय के लिए प्रेरित हैं | राज्यवर्धन एवं हर्षवर्धन के जीवन पर आधारित 'आत्मदान' जो अतिहासिक घटना पर हैं
डॉ. नरेंद्र कोहली जी को प्राप्त सम्मान
- 1 राज्य साहित्य पुरस्कार ( साथ सहा गया दुख ) शिक्षा विभाग, उत्तरप्रदेश शासन,
- इलाहाबाद नाट्य संघ पुरस्कार ( शंबूक की हत्या ) इलाहाबाद नाट्य संगम, इलाहाबाद।
- मानस संगम साहित्य पुरस्कार ( समग्र रामकथा ) मानस संगम, कानपुर।
- साहित्य सम्मान ( समग्र साहित्य ) हिंदी अकादमी, दिल्ली।
- अट्टहास शिखर सम्मान ( समग्र व्यंग्य साहित्य ) माध्यम साहित्यिक संस्थान, लखनऊ।
- शलाका सम्मान ( समग्र साहित्य ) हिंदी अकादमी दिल्ली।
- साहित्य भूषण -( समग्र साहित्य ) उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ।
- व्यास सम्मान– 2012(न भूतो न भविष्यति)
- पद्म श्री - 2017,भारत सरकार
नरेंद्र कोहली के उपन्यास दीक्षा (रामकथा-अभ्युदय का पहला हिस्सा )के साथ ही हिंदी साहित्य में सांस्कृतिक क्रांति का युग शुरू हुआ, श्रेष्ठ साहित्यकार होने के साथ-साथ वे एक श्रेष्ठ एवं ओजस्वी वक्ता थे. उनका व्यक्तित्व एक सरल, सहृदय एवं स्पष्टवादी पुरुष का था.
डॉ. नरेंद्र कोहली उनके चर्चित उपन्यासों में हिंदी साहित्य में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का युग शुरू हुआ, जिसे हिंदी साहित्य में नरेंद्र कोहली युग का नाम देने की चर्चा जोर पकड़ रही है।