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|| "नीम का पेड़" - डॉ. राही मासूम रज़ा ||
Neem Ka Ped Novel - Dr. Rahi Masum Raza
"सत्ता का अपना एक नशा होता हैं और अपनी जात भी | जो भी उस तक पहुँचता हैं उसकी ही जात का हो जाता हैं| जो उसकी रंगत मे नहीं रँगना जानता है वह उस तक कभी नहीं पहुँच सकता | कभी नहीं पहुँच पाता | उस तक पहुँचने के लिए उसकी ताकत को ही सलाम करना पड़ता हैं|"
|| नीम का पेड़ के लेखक : राही मासूम रज़ा (1927-1992) ||
राही मासूम रज़ा ,जन्म गाजीपुर जिले के गंगौली गांव में हुआ बाद में अलीगढ़ आ गये और यहीं से एम. ए करने के बाद उर्दू में पीएच.डी. की।पीएच.डी.करने के बाद राही अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय अलीगढ़ उर्दू विभाग में प्राध्यापक हो गये|
राही ने आधा गांव दिल एक सादा कागज ओस की बूंद हिम्मत जौनपुर उपन्यास व के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए वीर अब्दुल हमीद की जीवनीछोटे आदमी की बड़ी कहानी लिखी| सभी कृतियाँ हिंदी में हैं। तथा छोटी-बड़ी उर्दू नज़्में व गजलें लिखे चुके थे। आधा गाँव,नीम का पेड़,कटरा बी आर्ज़ू,टोपी शुक्ला,ओस की बूंद,और सीन 75 उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।
|| नीम का पेड़ उपन्यास के पात्र ||
कहानी का सूत्रधार नीम का पेड़ है, जो इस कहानी के मुख्य पात्र बुधई उर्फ बुधीराम द्वारा उसके बेटे सुखीराम के जन्म पर लगाया गया था | ये पेड़ दो पीढ़ियों के बदलावों को गंभीरता से देखता है,
इस कहानी में तीन-चार अन्य पात्र भी हैं, मदर्शाखुर्द और लक्ष्मनपुर मे रहने वाले जमीदार व मौसेरे भाइयों अली जमीन मिया और मुसलिम मियां, जिनकी दुश्मनी ही इस कहानी की शुरुआत हैं | और अगली पीढ़ी सुखीराम और अली जमीन मिया और मुसलिम मियां के बेटे को हैं |
इस कहानी में उपस्थित हर पात्र राजनीति का गणित बदल देने की योग्यता रखता हैं,इसके पात्र काल्पनिक जरूर है पर यथार्थ के बेहद करीब ,
||"नीम का पेड़" समीक्षा ||
”क्या मेरी यादें ही इतिहास बनेगी | मैं एक मामूली नीम का पेड़ हूँ.. तो क्या हुआ समय की कितनी करवटें देखि हैं मैंने-उनके बिना कोई इतिहास बन सकता है क्या ?न जाने कितनों का भविष्य छुपा है मेरी यादों में ..मैं बुधई के दरवाजे पर खड़ा समय को बीतते देखता रहा ..सन 46 में उसने मुझे यहाँ लगाया था अब सन उनीयसी है कितना कुछ बदल चुका है इन बरसों में |एक दुनिया टूट गई |उसकी जगह नई दुनिया बन गई..”
यह कहानी राजनीतिक सियासत, नफरत ,गिरती इंसानियत को बतलाते नीम के पेड़ कि कहानी हैं, “नीम का पेड़ ” जो अपने आस-पास के इंसानी बासिंदों के करतूतों का मौन साक्षी हैं| राजनीति का विद्रुप चेहरा खोखले वादे दगाबाजी व्यक्तिगत हित का सामाजिक हित से बड़ा होना , लालच का धारदार तरीके से सत्य के साथ वर्णन किया है
नीम का पेड़, यह पेड़ इस कहानी का सूत्रधार हैं, शायद डॉ. साहब ने किसी इंसान को इस लायक माना ही नहीं ,कि वह निष्पक्ष कहानी कह सकें, सच ही तो हैं मनुष्य के पास चेतन-बुद्धि ही है वह हर बात में अपना भला-बुरा तो देखता ही है | यह स्थिर पेड़ जो इंसन्नियत को बारीकी से देखता है और समझता हैं |
वह निष्पक्ष अपनी उम्र के साथ गाँव में आए बदलाव का साक्षी है और बहुत ईमानदार, शायद इंसानों के बीच रह कर भी उसमे इंसानियत नहीं आई हैं, नहीं... विकट वह अपनी शाखाओ के लिए,अपने नीबोरी के लिए...अपने ईमान से,धोखा नहीं किया ,उसकी घनी पत्ती से बनाने वाले छाव निष्कपट निस्वार्थ भाव से सबको ठंडक देती है ,वह सबकी चिंता करता है |
कहानी दो पीठियों की है और इसका परिवेश गुलामी के अंत मे पहुचे भारत से होते हुए आजाद भारत तक की है जो भारत के राजनीतिक बदलावों को ,आजादी के बाद के भारत की कल्पना को और आजादी के बाद भी दूदते सपनों की हैं
||"नीम का पेड़" उपन्यास का सारांश ||
कहानी की शुरुवात भारत-बटवारे के पूर्व से होती है, जहाँ यूपी के गाँव मदरसा खुर्द और लछमनपुर के जमीदार अली जमीन मिया और मुसलिम मियां के बीच बरसों से दुश्मनी और नफरत चली आ रही है,
ये दोनों मौसेरे भाई है और जामीन की बहन का निकाह मुसलिम मिया से हो चुका है ,और इसी कारण मुसलिम मिया अपनी पत्नी के हिस्से की जमीन ,अली जामीन मिया से लेना चाहते हैं |
गाँव मदरसा खुर्द मे राजनीतिक सत्ता बनाए रखने के लिए अली जामीन मियां ने, एक उभरते गांधी समर्थक कांग्रेसी नेता की हत्या कर दिया और अपने नौकर बुधई राम जो जमींन मिया का बेगार होता हैं , से झूठी गवाही दिला कर बच निकलते हैं |
बुधई को अपने मालिक के खिलाफ दी गई गवाही का बहुत अफसोस रहता है, पर अपने बेटे के भविष्य के लिए करता हैं| और भविष्य की सत्ता बदल जाती हैं |
ये दोनों एक दूसरे से बेइंतिहा नफरत करते है , एक दूसरे का सुख बर्दास्त नहीं कर सकते| दुश्मनी ऐसी की न एक दूसरे से जीत पाए, न हरा पाए , बस नफ़रतों का सिलसिला चलता रहा और उसमे राजनीति का नमक भी लग गया|
समय बीतता है, भारत की आजादी के बाद, राजनीतिक परिवेश बदलती हैं, जमीदारी प्रथा बंद होती है, वही साथ ही गाँव की सत्ता भी बदल जाती है अब गाँव का सत्ता सुखीराम के पास आ जाती है,मिया जामीन के बेगार बुधई उर्फ बुधीराम का बेटा सुखीराम | वह एमपी बन गया,और अब गाँव में उसका रौब चलता हैं| कुछ ही समय में सियासत का खिलाड़ी हो जाता हैं , राजनीति का नशा ,सत्ता का लालच.. उसको भी नहीं छोड़ता | भ्रष्टाचार कुचारित्रता का बीज उसके अंदर भी पनपता है और अंत मे सियासती लाभ के लिए किसी की हत्या करने मे भी पीछे नहीं रहता |
वही दूसरी ओर उसका पिता बुधई जो अपने मालिक जामीन मिया के खिलाफ दिये बयान से, खुद ग्लानि में है, उसने अपने बेटे को अच्छा इंसान बनाने के लिए अपना ईमान दबाना पड़ा,ताकि उसका बेटा बड़ा हो कर एक सत्य प्रिय व्यक्ति बनेगा कमजोरों को न्याय दिलाएगा ,आज खुद बुराई के दलदल मे धासा हुआ हैं |ये सत्य का ज्ञान होते ही वह कुछ एसा करता है जो इस कहानी का अंत करने के लिए आवश्यक था |
||नीम का पेड़ उपन्यास की भाषा शैली ||
"सत्ता का अपना एक नशा होता हैं और अपनी जात भी | जो भी उस तक पहुँचता हैं उसकी ही जात का हो जाता हैं| जो उसकी रंगत मे नहीं रँगना जानता है वह उस तक कभी नहीं पहुँच सकता | कभी नहीं पहुँच पाता | उस तक पहुँचने के लिए उसकी ताकत को ही सलाम करना पड़ता हैं |"
"नीम का पेड़" इस उपन्यास की खास बात इसका नीम के द्वारा कहानी कहा जाना हैं,बहुत ही सटीक व कटु पर सत्य के साथ वर्णन हैं, डॉ रज़्ज़ा की राजनीतिक समीक्षा बहुत ही बारीक पर सत्य हैं उपन्यास की भाषा सीधी सरल हिन्दी है साथ में उर्दू शब्दों और कुछ कुछ स्थानी 'अवधी' का भी प्रयोग हैं |
||" नीम का पेड़" टीवी धारावाहिक (Neem ka Ped tv serial) ||
ये 1991 मे दूरदर्शन में "नीम का पेड़" धारावाहिक प्रसारित हुआ था,जिसमे बुधई राम का पात्र पंकज कपूर ने निभाया था ,जिसके निर्देशक गुरबीर सिंह ग्रेवाल थे और निर्माता नोमान मलिक थे इस धारावाहिक का परिचय गीत "मुँह की बात सुने हर कोई " निदा फाजली द्वारा लिखा और जगजीत सिंह द्वारा गाया गया था|
Very nice.....
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