पंचतन्त्र का विश्व-साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। नीतिकथाओं में पंचतंत्र का पहला स्थान है। जीवन को सूझ बुझ से जीने और नैतिक मूल्यों को आसानी से सीखाने के लिए इस मनोरंजक शास्त्र को रचा गया |
इसमे लोक या सामाजिक व्यवहार को बहुत सरल तरीके से बताया गया है। बहुत से लोग इस पुस्तक को नेतृत्व क्षमता, योग्यता विकसित करने का एक सशक्त माध्यम मानते हैं। इस पुस्तक की विशेषता इसी से पता चलती है कि इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुका है।
अरब की 'अरेबिअन नाइट्स' जैसी कहानियों का आधार पंचतन्त्र ही है। पंचतंत्र के ही आधार पर हितोपदेश की रचना है। इसका अनुवाद विश्व की लगभग हर भाषा में हो चुका है।
यह किताब हर उम्र के लिए हैं क्योंकी इसकी सीख उम्र से नहीं बंधी हैं समझदारी ,धर्य,विवेकशीलता, विनम्रता ये हर उम्र मे और हर व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं | बुरी अड़ते लालच चतुराई घमढ़ अहंकार ईषया से दूर रखने की कहानी हैं इसमे |
पंचतंत्र की रचना क्यों हुई ? | Panchtantra ki rachna kyo hui ? |
दक्षिण में महिलारोप्य राज्य के राजा अमरशक्ति की कहानी दी है जिसमें यह बताया गया है कि राजा अमरशक्ति अपने तीनों मूर्ख पुत्रों के लिए कारण चिन्तित थे और उन में से कोई मे योग्य राज्य बनने के लायक नहीं था | इसलिए वे विष्णुशर्मा नामक विद्वान् को अपने पुत्रों को शिक्षित करने के लिए सौंप देते है और विष्णुशर्मा उन्हें छः महीनों (6 month) में ही कहानियों के माध्यम से सुशिक्षित ,व्यवहार कुशल, कुशलता राजनैतिक बनाने में सफल होते हैं।
पंचतंत्र की रचना किसने की ? | Panchtantra ki rachna kisne ki ? | पंचतन्त्र के रचयिता इनमें से कौन हैं? | पञ्चतन्त्रम् कथा ग्रंथ के लेखक कौन है? | पंचतंत्र नामक पुस्तक के लेखक कौन है? |
इस ग्रंथ के रचयिता पं॰ विष्णु शर्मा है।
क्या हैं पंचतन्त्र ? | क्यों पढ़ा इसका नाम पंचतन्त्र? | पंचतंत्र के कितने भाग हैं? | पंचतंत्र का क्या अर्थ है? |panchtantra ke kitne part hain?
पंचतन्त्र में पांच तन्त्र या भाग है। मतलब यह पुस्तक 5 भागों मे बटी हुई हैं| हर भाग विशेष व्यवहारिक ज्ञान को देती हैं ,व्यक्ति की पहचान करना ,दूसरों की मदद करना दुश्मनों मूर्खों से बच कर रहना ,लोक व्यवहार और सूझ बुझ से ही धर्य के साथ की कोई निर्णय और करना | विभाग को तन्त्र इसलिए कहा गया है क्योंकि इनमें नैतिकता पूर्ण शासन की विधियाँ बतायीं गयीं हैं।
ये तन्त्र या भाग हैं- मित्रभेद, मित्रसम्प्राप्ति (मित्रलाभ), काकोलूकीयम् (सन्धि-विग्रह), लब्धप्रणाश एवं अपरीक्षितकारक।
· मित्रभेद (दोस्तों में मनमुटाव एवं अलगाव)
· मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र या दोस्त प्राप्ति एवं उसके लाभ)
· काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कहानी )
· लब्धप्रणाश (हाथ लगी वस्तु (लब्ध) का हाथ से निकल जाना (हानि)
· अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)
पंचतंत्र में प्रथम तंत्र / भाग कौन सा है?
मित्रभेद
मित्रभेद, पंचतंत्र में पहला तंत्र है इस भाग की कहानी में, एक दुष्ट सियार 'दमनक’ के द्वारा ‘पिंगलक’ नाम के शेर के साथ संजीवक नाम के एक बैल के बीच शत्रुता कराने का वर्णन है, वह बैल जिसे शेर ने कभी मुशीबत से बचाया था और अपने दो मन्त्रियों- करकट और दमनक नाम के सियार के विरोध करने पर भी उसे अपना मित्र बना लिया था।
इस तन्त्र में जानवरों द्वारा एक दूसरे को सीख देने के लिए कुछ कहानी दी जाती हैं जिसमे कई प्रकार की शिक्षाएं दी गई है|
बंदर और लकड़ी का खूटा - बंदर ने उस चीज/काम मे हाथ लगाया जहां उसका कोई काम नहीं था और मार जाता हैं | गीदड़ और ढोल की कहानी ,कौवों और साँप की कहानी,संत और गीदड़, केकड़े और सारस पक्षी की कहानी, खरगोश् और शेर, कीड़ा और जुए की कहानी |
पंचतंत्र में दूसरा तंत्र/ भाग कौन सा है?
मित्रसम्प्राप्ति
इस तन्त्र में मित्र या दोस्त की मिलने से कितना सुख एवं आनन्द प्राप्त होता है वह कपोतराज चित्रग्रीव की कहानी के माध्यम से बताया गया है। कठिन समय में दोस्त ही सहायता करता है-माना गया है कि सच्चे दोस्त का घर में आना स्वर्ग से भी अधिक सुख को देता है।
कौआ, कछुआ, हिरण और चूहा मित्रता की कहानी "सच्चे मित्र "
इस प्रकार इस दूसरे भाग में दोस्त के महत्व को बताया है कि उपयोगी और सच्चे दोस्त ही बनाने चाहिए जिस प्रकार कौआ, कछुआ, हिरण और चूहा मित्रता के बल पर ही सुखी रहे।
पंचतंत्र के तीसरे तंत्र का क्या नाम है?
काकोलूकीय
इसमें युद्ध और सन्धि के विषय मे वर्णन करते हुए, उल्लुओं की गुफा को कौओं द्वारा जला देने की कहानी है। इसमें यह बताया गया है कि जो व्यक्ति आलस्य में पड़कर निरन्तरता से बढ़ते हुए शत्रु और रोग की उपेक्षा करता है- उसके रोकने की चेष्टा नहीं करता वह क्रमशः उसी (शत्रु अथवा रोग) से मारा जाता है- इसलिए स्वार्थ सिद्धि के तथा स्वयं की सुरक्षा के लिए शत्रु को भी मित्रता कर लेना चाहिए और बाद में चतुराई से धोखा देकर उसे नष्ट कर देना चाहिए।
इस भाग में भी एक कौआ उल्लू से मित्रता कर लेता है और बाद में उल्लू के पूरे गुफा में आग लगवा देते है। इसलिए शत्रुओं से सावधान रहना चाहिए और अपने लोग पर हमेशा भरोशा करना चाहिए |
उल्लुओं और कौओं की कहानी
पंचतंत्र के चौथा तंत्र का क्या नाम है?
लब्धप्रणाश यानी हाथ लगी वस्तु का हाथ से निकल जाना |
इस भाग में बंदर और मगरमच्छ की मुख्य कहानी है के साथ अन्य कई सहायक कहानी भी हैं। इन कहानियों में यह बताया गया है कि लब्ध अर्थात् वस्तु की प्राप्ति होते होते कैसे रह गई! अर्थात नष्ट हो गई। इसमें बंदर और मगरमच्छ की कथा के माध्यम से शिक्षा दी गई है कि बुद्धिमान अपने बुद्धिबल से जीत जाता है और मूर्ख हाथ में आई हुई वस्तु से भी वंचित रह जाता है।
पंचतंत्र के पाँचवा तंत्र का क्या नाम है? | पंचतंत्र के अंतिम तंत्र का क्या नाम है?
अपरीक्षितकारक
पंचतन्त्र के इस अन्तिम तन्त्र अर्थात् भाग में विशेषरूप से विचार पूर्वक अच्छे से समझ कर कार्य करने की नीति पर बल दिया है क्योंकि अच्छी तरह विचार किए बिना एवं भलीभांति देखे सुने बिना किसी कार्य को करने वाले व्यक्ति को कार्य में सफलता प्राप्त नहीं होती अपितु जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अतः अन्धा होकर अनुसरण नहीं करना चाहिए। इस तन्त्र की मुख्य कथा में बिना सोचे समझे आँख बंद कर करने वाले एक नाई की कथा है
इसमें बताया है कि पूरी जानकारी के बिना भी कोई कार्य नहीं करना चाहिए क्योंकि बाद में पछताना पड़ता है
नाई की कथा ,ब्राह्मण पत्नी और नेवले की कहानी ,
भारतीय या कहे प्राचीन भारत मे ऐसे कई साहित्य हैं जो मानव व्यक्तित्व के विकास के लिए बने थे जिसमे से पंचतंत्र सबसे विशिष्ट हैं ,और हर बच्चे जब वे कुछ समझदार हो जाए को एक बार ये पुस्तक पूरी पढ़नी चाहिए ,इसकी अलग अलग कहानी तो हुमने बहुत सुनी हैं पर वह कहानी किस बात के लिए हैं यह जानना जरूरी हैं ,ये पांचों भाग एक साथ में जीवन को जीने की कला को बताने के लिए उपयुक्त हैं |
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